Tuesday 2 October 2012

झूठे दावे

मै जानती हूँ ....

वक़्त कभी ठहरता नहीं
वो चलता रहता है निरंतर
बहता रहता है रवानगी से

साथ अपने ले जाता है
एक एक कर वो सारे लम्हे
जो गिन के दिए थे उसने

फिर भी सुनती हूँ अक्सर
"वक्त थम गया "

नहीं जानती
वक्त की गति झूठी है
या तुम्हारे भावों की प्रकृति?

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