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Monday 12 November 2012
Monday 15 October 2012
विरासत
उसे चाँद बहुत पसंद था
अक्सर किसी गोद में सर रख
ढूंडता था सैकड़ों समानताये
चाँद उसे
उस रोटी जैसा नजर आता
जिसे वो गोद वाली
पांच हिस्सों में बाट
अन्नपूर्णा हो जाती रही
मानो हर रात
किसी एक के हिस्से का निवाला टूटता
यूँ एक ही चाँद को
कई दिनों तक चलाया उसने ..
काजल की धार सा
वो नुकीला चाँद
दीवार पे टंगे हसियां सा दिखता
जिसे उठा,
निकल पड़ता था
चोरी से बाजरा या धान काटने खातिर
अपने हक के लिए भी
जिस दिन निकला
उठाया था हसियां उसने
वो न मिलता तो
दूर टंगे चाँद को ही ले चलता
हक़ की लड़ाई में हथियार जरुरी होता है न !!
जब जब आसमान में ग्रहण रहता ..
ठीक उसी पल
वो छिप जाता..
गोद अमावसी हो जाती
परिवार और उसके बीच
रोटी की तड़प और तलाश आ जाती
आसमानी ग्रहण तो उतर गया
लेकिन चार लोगो का घटा नहीं
आसमान में टंगी
ललचाती रोटी को
आज फिर उसी गोद में सर रख
कोई निहार रहा है ...
शायद बड़े बेटे ने अपनी विरासत संभाल ली है |
अक्सर किसी गोद में सर रख
ढूंडता था सैकड़ों समानताये
चाँद उसे
उस रोटी जैसा नजर आता
जिसे वो गोद वाली
पांच हिस्सों में बाट
अन्नपूर्णा हो जाती रही
मानो हर रात
किसी एक के हिस्से का निवाला टूटता
यूँ एक ही चाँद को
कई दिनों तक चलाया उसने ..
काजल की धार सा
वो नुकीला चाँद
दीवार पे टंगे हसियां सा दिखता
जिसे उठा,
निकल पड़ता था
चोरी से बाजरा या धान काटने खातिर
अपने हक के लिए भी
जिस दिन निकला
उठाया था हसियां उसने
वो न मिलता तो
दूर टंगे चाँद को ही ले चलता
हक़ की लड़ाई में हथियार जरुरी होता है न !!
जब जब आसमान में ग्रहण रहता ..
ठीक उसी पल
वो छिप जाता..
गोद अमावसी हो जाती
परिवार और उसके बीच
रोटी की तड़प और तलाश आ जाती
आसमानी ग्रहण तो उतर गया
लेकिन चार लोगो का घटा नहीं
आसमान में टंगी
ललचाती रोटी को
आज फिर उसी गोद में सर रख
कोई निहार रहा है ...
शायद बड़े बेटे ने अपनी विरासत संभाल ली है |
Tuesday 9 October 2012
एक लड़की का ख्व़ाब
लड़की होना
कल्पना जैसा सुंदर होना है
ऐसी कल्पना का ख्व़ाब भला क्या हो सकता है ?
कई बार सोचा
कल्पना करूँ उन ख़्वाबों की ..
एक सुखी परिवार, बच्चे, शान्ति, आराम
नहीं होते है उसके तस्सव्वुर में
वो अगर ख्व़ाब बुनती है
तो सिर्फ असीम स्नेह के
एक हमसफ़र ..
कभी न ख़त्म होने वाला सफ़र
तन्हाई ..
छोटी-छोटी सी शरारतें
कायम रखना चाहती है
धडकनों की हलचल
बसा लेती है एक और जहां
दुनिया से बहुत दूर ...
लड़की होना
मासूमियत जितना मासूम होना है
बस जीती रहती है इन ख्वाबों में ..
कल्पना जैसा सुंदर होना है
ऐसी कल्पना का ख्व़ाब भला क्या हो सकता है ?
कई बार सोचा
कल्पना करूँ उन ख़्वाबों की ..
एक सुखी परिवार, बच्चे, शान्ति, आराम
नहीं होते है उसके तस्सव्वुर में
वो अगर ख्व़ाब बुनती है
तो सिर्फ असीम स्नेह के
एक हमसफ़र ..
कभी न ख़त्म होने वाला सफ़र
तन्हाई ..
छोटी-छोटी सी शरारतें
कायम रखना चाहती है
धडकनों की हलचल
बसा लेती है एक और जहां
दुनिया से बहुत दूर ...
लड़की होना
मासूमियत जितना मासूम होना है
बस जीती रहती है इन ख्वाबों में ..
Wednesday 3 October 2012
बदलता मौसम
आँसू गम के ही नहीं
ख़ुशी के भी होते है
तुम्हारे आंसुओं का पता ही नहीं चलता ...
आज फिर तुम बरसे हो
लोग कह रहे थे
मौसम बड़ा खुशगवार है
शायद आसमान में छिटकी
बिखरे काजल सी कालिमा
उन्हें नजर नहीं आई ...
काजल कब बिखरता है मैं जानती हूँ
नहीं जानती तो बस इतना
मौसम क्यों ?
बनते बनते यूँ बिगड़ गया
मेरे नसीब की तरह ....
ख़ुशी के भी होते है
तुम्हारे आंसुओं का पता ही नहीं चलता ...
आज फिर तुम बरसे हो
लोग कह रहे थे
मौसम बड़ा खुशगवार है
शायद आसमान में छिटकी
बिखरे काजल सी कालिमा
उन्हें नजर नहीं आई ...
काजल कब बिखरता है मैं जानती हूँ
नहीं जानती तो बस इतना
मौसम क्यों ?
बनते बनते यूँ बिगड़ गया
मेरे नसीब की तरह ....
"ऑनर किलिंग"
अपने गालों पर उभरी
उन पांच उँगलियों को देख
उसे याद आया ....
उसे याद आया ....
दी थी कभी उसने
अपनी ऊँगली
उन छोटे छोटे नर्म गुद्दरे हाथों में
जो सीख रहा था अपनों के अहसास को
बरबस मुस्कुरा देती
उस मखमली छुवन से
उस मुलायमी पकड़ से
खुद एक गोद से उतर
लडखडाते क़दमों से
उम्र भर की एक ज़िम्मेदारी...
वो बड़ी बहन हो गई थी
तीन रोज़ की रातों को मिटा
एक नाम रखा ...
बार बार उसी नाम को दोहरा
जाने क्या क्या बातें करती
वो भी तो मुस्कुराता था
भर जाती भीतर तक
उस मुस्कान से ....
निश्छल चमक वाली आँखों को
इक टुक निहार
खुद ही नजर उतार लेती
बावरी कभी कभी माँ सी हो जाती थी
वही आज "जड़" हो सोच रही
क्या प्रेम वाकई इतना बड़ा गुनाह है
प्रेम - एक भाव
जिसे जीने की चाह हो गया अपराध
जिसने मिटा दी
स्नेह की सभी स्मृतियाँ !!
लगातार रिसते बेरंग लहू से
चेहरा लहुलुहान हो रहा था
सनती रही रात भर उसी लहू में
कदमो में आखिरी साँसों के लिए
कुछ तड़प रहा था
और फिर.....दम तोड़ गया |
वो उठी ..
मिटाने लगी सारे सबूत
पानी की छाप्क्किया मार
कुछ ख़ास थोड़े ही हुआ था ..
बस..एक रिश्ते की मर्यादा की
मान के लिए कर दी गई थी
"ऑनर किलिंग "
निश्छल चमक वाली आँखों को
इक टुक निहार
खुद ही नजर उतार लेती
बावरी कभी कभी माँ सी हो जाती थी
वही आज "जड़" हो सोच रही
क्या प्रेम वाकई इतना बड़ा गुनाह है
प्रेम - एक भाव
जिसे जीने की चाह हो गया अपराध
जिसने मिटा दी
स्नेह की सभी स्मृतियाँ !!
लगातार रिसते बेरंग लहू से
चेहरा लहुलुहान हो रहा था
सनती रही रात भर उसी लहू में
कदमो में आखिरी साँसों के लिए
कुछ तड़प रहा था
और फिर.....दम तोड़ गया |
वो उठी ..
मिटाने लगी सारे सबूत
पानी की छाप्क्किया मार
कुछ ख़ास थोड़े ही हुआ था ..
बस..एक रिश्ते की मर्यादा की
मान के लिए कर दी गई थी
"ऑनर किलिंग "
Tuesday 2 October 2012
नाजायज़
ए बगीचे के फूल!!
तुम्हे महकना आता है ..
अच्छा है |
पर सुनो ....
इस बगीचे के कुछ उसूल है
महकना होगा तुम्हे..नियमों पर यंहा
बिखरना होगा ..
माली की ही पुकार पर
करना होगा इनकार तुम्हे
हर उस शय से
जो दर्ज नहीं किसी अनदेखे कायदे में|
नहीं तो जान लो ...
मुहाल हो जायेगा
जीना तुम्हारा
और साबित कर दी जाएगी
तुम्हारी खुशबू ... नाजायज़ !!
तुम्हे महकना आता है ..
अच्छा है |
पर सुनो ....
इस बगीचे के कुछ उसूल है
महकना होगा तुम्हे..नियमों पर यंहा
बिखरना होगा ..
माली की ही पुकार पर
करना होगा इनकार तुम्हे
हर उस शय से
जो दर्ज नहीं किसी अनदेखे कायदे में|
नहीं तो जान लो ...
मुहाल हो जायेगा
जीना तुम्हारा
और साबित कर दी जाएगी
तुम्हारी खुशबू ... नाजायज़ !!
Wednesday 19 September 2012
दोस्ती प्रेम, चाह एवं लगाव
वैसे ही खूबसूरत, रंगीन और उम्मीदों से भरी हुई
का प्रस्फुटन
शाखों से फूटती कलियों की तरह ही होता है
वैसे ही खूबसूरत, रंगीन और उम्मीदों से भरी हुई
सामने आ जाता है
उसका रंग, खुशबू और आकार
फिर
एक लम्बे वक्त के लिए थम जाता है सब
बन जाता है एक रूटीन
न कोई उम्मीद न ही ताजगी
बस सम्भालना एक -दूजे को
वक्त से गिरती पंखुरियों की तरह
टूटने लगता है ठहराव
दोस्ती, प्रेम, चाह एवं लगाव का
फूल मुरझाने लगता है ...
Wednesday 4 July 2012
कभी - कभी
मेरे अन्दर का कोई
कर देता है
इनकार
हर इक रिश्ते से
जो उसका है मेरे साथ ..
मै चुप
सुन लेती हूँ सब
भर जाती हूँ आत्मग्लानि से
लेकिन बाज़ नहीं आती
कभी - कभी
मै खुद
खड़ा कर देती हूँ
उस अन्दर के शख्स को
कटघरे में
और गाड़ देती हूँ
अपनी खूंखार निगाहें
उसके चेहरे पर
वो चुप
झेल जाता है सब
दब जाता है बेबसी के बोझ से ...
लेकिन साथ नहीं छोड़ता
कभी - कभी
होता हैं यूँ भी
वो हाथ थाम
बैठा लेता है मुझे
पास अपने
दिखाता है फिर
अपनी ही दुनिया की एक किताब
समझाने लगता है ...इंसानियत
मै हार जाती हूँ
उसकी अच्छाई से ..
तो कभी- कभी
मै उठ,
फेंक देती हूँ वो किताब
और त्योरियां चढ़ा
समझा देती हूँ
बकवास बंद करो !!
तुम तो किताबो मे जीते हो
मुझे दुनिया में जीना है ..
मेरे अन्दर का कोई
कर देता है
इनकार
हर इक रिश्ते से
जो उसका है मेरे साथ ..
मै चुप
सुन लेती हूँ सब
भर जाती हूँ आत्मग्लानि से
लेकिन बाज़ नहीं आती
कभी - कभी
मै खुद
खड़ा कर देती हूँ
उस अन्दर के शख्स को
कटघरे में
और गाड़ देती हूँ
अपनी खूंखार निगाहें
उसके चेहरे पर
वो चुप
झेल जाता है सब
दब जाता है बेबसी के बोझ से ...
लेकिन साथ नहीं छोड़ता
कभी - कभी
होता हैं यूँ भी
वो हाथ थाम
बैठा लेता है मुझे
पास अपने
दिखाता है फिर
अपनी ही दुनिया की एक किताब
समझाने लगता है ...इंसानियत
मै हार जाती हूँ
उसकी अच्छाई से ..
तो कभी- कभी
मै उठ,
फेंक देती हूँ वो किताब
और त्योरियां चढ़ा
समझा देती हूँ
बकवास बंद करो !!
तुम तो किताबो मे जीते हो
मुझे दुनिया में जीना है ..
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