Monday 15 October 2012

विरासत

उसे चाँद बहुत पसंद था
अक्सर किसी गोद में सर रख
ढूंडता था सैकड़ों समानताये

चाँद उसे
उस रोटी जैसा नजर आता
जिसे वो गोद वाली
पांच हिस्सों में बाट
अन्नपूर्णा हो जाती रही

मानो हर रात
किसी एक के हिस्से का निवाला टूटता
यूँ एक ही चाँद को
कई दिनों तक चलाया उसने ..

काजल की धार सा
वो नुकीला चाँद
दीवार पे टंगे हसियां सा दिखता

जिसे उठा,
निकल पड़ता था
चोरी से बाजरा या धान काटने खातिर

अपने हक के लिए भी
जिस दिन निकला
उठाया था  हसियां उसने
वो न मिलता तो
दूर टंगे चाँद को ही ले चलता

हक़ की लड़ाई में  हथियार जरुरी होता है न !!

जब जब आसमान में ग्रहण रहता ..
ठीक उसी पल
वो छिप जाता..
गोद अमावसी हो जाती

परिवार और उसके बीच
रोटी की तड़प और तलाश आ जाती

आसमानी ग्रहण तो उतर गया
लेकिन चार लोगो का घटा नहीं

आसमान में टंगी
ललचाती रोटी को
आज फिर उसी गोद में सर रख
कोई निहार रहा है ...

शायद बड़े बेटे ने अपनी विरासत संभाल ली है |


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