कभी - कभी
मेरे अन्दर का कोई
कर देता है
इनकार
हर इक रिश्ते से
जो उसका है मेरे साथ ..
मै चुप
सुन लेती हूँ सब
भर जाती हूँ आत्मग्लानि से
लेकिन बाज़ नहीं आती
कभी - कभी
मै खुद
खड़ा कर देती हूँ
उस अन्दर के शख्स को
कटघरे में
और गाड़ देती हूँ
अपनी खूंखार निगाहें
उसके चेहरे पर
वो चुप
झेल जाता है सब
दब जाता है बेबसी के बोझ से ...
लेकिन साथ नहीं छोड़ता
कभी - कभी
होता हैं यूँ भी
वो हाथ थाम
बैठा लेता है मुझे
पास अपने
दिखाता है फिर
अपनी ही दुनिया की एक किताब
समझाने लगता है ...इंसानियत
मै हार जाती हूँ
उसकी अच्छाई से ..
तो कभी- कभी
मै उठ,
फेंक देती हूँ वो किताब
और त्योरियां चढ़ा
समझा देती हूँ
बकवास बंद करो !!
तुम तो किताबो मे जीते हो
मुझे दुनिया में जीना है ..
मेरे अन्दर का कोई
कर देता है
इनकार
हर इक रिश्ते से
जो उसका है मेरे साथ ..
मै चुप
सुन लेती हूँ सब
भर जाती हूँ आत्मग्लानि से
लेकिन बाज़ नहीं आती
कभी - कभी
मै खुद
खड़ा कर देती हूँ
उस अन्दर के शख्स को
कटघरे में
और गाड़ देती हूँ
अपनी खूंखार निगाहें
उसके चेहरे पर
वो चुप
झेल जाता है सब
दब जाता है बेबसी के बोझ से ...
लेकिन साथ नहीं छोड़ता
कभी - कभी
होता हैं यूँ भी
वो हाथ थाम
बैठा लेता है मुझे
पास अपने
दिखाता है फिर
अपनी ही दुनिया की एक किताब
समझाने लगता है ...इंसानियत
मै हार जाती हूँ
उसकी अच्छाई से ..
तो कभी- कभी
मै उठ,
फेंक देती हूँ वो किताब
और त्योरियां चढ़ा
समझा देती हूँ
बकवास बंद करो !!
तुम तो किताबो मे जीते हो
मुझे दुनिया में जीना है ..