Wednesday 23 January 2013

अल्टीमेटम



बेवजह की मुस्कराहट ओढने वाली ओ लड़की !
मेरी बात ध्यान से सुनो ..

इस बार तुम खुल कर रोना

ठीक उसी पुरुष के आगे
जिसने तुम्हारे आसुंओं को टेसुए कहा है
या फिर गंगा जमुना ...

लज्जा की अग्नि में पल पल जलने वाली ओ लड़की !
तुम आँखों में चिंगारी भर
होठों से चुप्पी की सील तोड़ देना

और बता देना
तुम्हारे रुदन पर हसंते या क्रोधित होते उस पुरुष को
कि तुम्हारा "ना रोना" उतना ही मुश्किल है
जितना कि "एक पुरुष" का रोना

दे देना एक "अल्टीमेटम"
कि जिस दिन वो तुम्हारे आगे फूट फूट कर रो सके
तब ही तुम से कहे "नाटक मत करो"

Monday 7 January 2013

डर

आधुनिक नगाड़ों की गूंज से
खुल गए थे
आपस में बंधे दो हाथ

कुछ चिंताए उभर आई
दोनों के ही माथे पर

पिता दहल जाता है असुरक्षा से
और बेटी .......

बेटी भांप लेती है.. "चारदीवारी "

वजूद

तिनको और जर्रो से
संवरा वजूद
है तो कुछ भी नहीं
सिर्फ धुल मिटटी

जब-जब वो बिखर जाती
आँगन में
खटकता है उसका
इस तरह बेसलीका हो जाना
चंद निगाहों में

पिता आँखे तरेड
याद दिलाता है
सफ़ेद अचकन की चमक

हुनरमंद माँ
सकपका के बुहार लेती है
समेट देती है उसकी गर्द तलक
आँगन के किसी कोने में

अगले दिन
कूड़े की बाल्टी बेटे को सौंप
महसूस करती है
किसी बोझ का उतर जाना

पिता आश्वस्त हो जाता है
अचकन की चमक के लिए

और पुत्र
बाल्टी घर के बाहर खंगाल
निभा देता है "एक कर्तव्य"

माँ कहती है ..
लड़कियों की डोली भाई ही उठता है






Sunday 6 January 2013

प्रेम पत्र

कागज़ की खुशबू
कलम की स्याही के छूते ही
बिखर उठी ..

महक उठा उस फड़फड़आते हुए पन्ने का रोम रोम
उसकी चंचलता ने मचलना रोक लिया ..

बस खामोश बयाँ करने लगी
जो भी उस पर लिख दिया गया ..

पहले प्रेम सा ही अजीज़ था
............ वो पहला प्रेम पत्र !