Wednesday 23 January 2013

अल्टीमेटम



बेवजह की मुस्कराहट ओढने वाली ओ लड़की !
मेरी बात ध्यान से सुनो ..

इस बार तुम खुल कर रोना

ठीक उसी पुरुष के आगे
जिसने तुम्हारे आसुंओं को टेसुए कहा है
या फिर गंगा जमुना ...

लज्जा की अग्नि में पल पल जलने वाली ओ लड़की !
तुम आँखों में चिंगारी भर
होठों से चुप्पी की सील तोड़ देना

और बता देना
तुम्हारे रुदन पर हसंते या क्रोधित होते उस पुरुष को
कि तुम्हारा "ना रोना" उतना ही मुश्किल है
जितना कि "एक पुरुष" का रोना

दे देना एक "अल्टीमेटम"
कि जिस दिन वो तुम्हारे आगे फूट फूट कर रो सके
तब ही तुम से कहे "नाटक मत करो"

2 comments:

  1. खुश्बू... :) मुझे याद है ये कविता :)

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  2. बढ़िया.....
    पुरुष को उसके नॉन इमोशनल होने का एहसास तो हो....

    अनु

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