Sunday 18 August 2013

नाम.

मैं जब तब
उकेरने लगती
अपनी उंगलियाँ

और लिख देती
अपना नाम.….
होश-ओ- हवास से  दूर
ख्यालों में डूबे हुए भी

मुझे पसंद रहा
छप्प छप्प करते
कमर तक के पानी में
उंगलियाँ घुमा घुमा

अपना नाम लिखना

उबासियाँ लेती
अलसाई दोपहर में
औंधे पड़े गिलास से
जब - जब पानी बहा
मैं फौरन लिखने लगती
अपना नाम.…

बार बार.…… हर बार
दिवाली की फुलझड़ी
कोई पीठ
ऑस में भीगी खिड़की
धूल में डूबा शीशा

मेरी पहली तख्ती
हो जाते रहे
और पहला लव्ज़
मेरा नाम.……

फिर जाने किस मोड़ पर
मेरा वो नाम खो गया
और मैं लिखने लगी

तुम्हारा नाम.……


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