Wednesday 12 June 2013

इस बार जो तुम लिखना ...



इस बार जो तुम लिखना,
तो लिखना ...
मेरा पहरों पे टकटकी लगा बैठना ...

एक पुकार की
दरकार में
हज़ारों को अनसुना करना ..

तुम लिखना
कि देखा है तुमने
मुझे
अपने पीठ पर गिरते हुए सायों में ...

सुना है मुझे
जवाब न दिए गए
ब्लेंक कॉल्स में ....

मैं अरसे से  सुनना चाहती हूँ
तुममे अपनी शामिलात ...

इस बार जो तुम लिखना
तो लिखना
मेरी मौजूदगी
बेबात आ जाने वाली मुस्कुराहटों में

जैसे मैं लिख चुकी हूँ
तुम्हारी "गैर मौजूदगी "
कभी न टूटने वाले ख्यालों में ...


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