Wednesday 21 August 2013

प्रस्ताव

एक मुलाक़ात 
एक प्रस्ताव 
तुम में भरा हुआ था 
डर.… 
चिंता 
खामोशी

मैं लबरेज थी 
उम्मीद 
मुस्कान 
और बेफिक्री से.…

तुमने प्रस्ताव रखा 
मैंने स्वीकार किया। 

फिर आपस में बदल लिया 
हमने खुद को.…. 

तुम मुस्कुराए 
उम्मीदों से भरे हुए 
बेफिक्र हो चले.…

और मैं.…. 
अपने डर की चिंता लिए हुए 
खामोश वन्ही खड़ी रही.… 

तुम्हे जाते हुए देखने के लिए 

मेरी मोहब्बत के वो 
पहले उपहार थे 

एक -दूजे के लिए.…. 

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