एक मुलाक़ात
एक प्रस्ताव
तुम में भरा हुआ था
डर.…
चिंता
खामोशी
मैं लबरेज थी
उम्मीद
मुस्कान
और बेफिक्री से.…
तुमने प्रस्ताव रखा
मैंने स्वीकार किया।
फिर आपस में बदल लिया
हमने खुद को.….
तुम मुस्कुराए
उम्मीदों से भरे हुए
बेफिक्र हो चले.…
और मैं.….
अपने डर की चिंता लिए हुए
खामोश वन्ही खड़ी रही.…
तुम्हे जाते हुए देखने के लिए
मेरी मोहब्बत के वो
पहले उपहार थे
एक -दूजे के लिए.….
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