आज
जबकि इजाद हो चुके है
सौ सौ तरीके ….
शब्दों को
तुम तक पहुँचाने के.
मैं छुपा लेती हूँ
सब कुछ।
नहीं चाहती
जान सको तुम
कुछ भी.…जो मेरा है।
जबकि चाहती हूँ
तुम तक पहुँचती रहे
पल पल की
मेरी हर खबर ….
खबर पहुँचने
और पहुँचाने के अंतर को
बरकरार रखना चाहती हूँ।
आजकल अपने ख्यालों,
ख़ुशी , ग़म
अपने हर एहसास को
सबके सामने रखने से
कतराने लगी हूँ।
मेरे हाथ
कुछ लिखते-लिखते
सब कुछ
बेकस्पेस कर देते है।
मुझे ये फ़िक्र नहीं
हज़ारों लोगों तक
पहुँचने वाले मेरे शब्दों पर
कोई सवाल न खड़ा कर दें .…
कौन है ? क्या हुआ ? किसके लिए ?
मुझे
उन हज़ारों में
एक ही शख्स का ध्यान रहता है.…
कंही वो
मेरे शब्दों में
अपना नाम न पढ़ ले …
और जान न जाए कि
मैं आज भी उसे लिखती हूँ।
जबकि इजाद हो चुके है
सौ सौ तरीके ….
शब्दों को
तुम तक पहुँचाने के.
मैं छुपा लेती हूँ
सब कुछ।
नहीं चाहती
जान सको तुम
कुछ भी.…जो मेरा है।
जबकि चाहती हूँ
तुम तक पहुँचती रहे
पल पल की
मेरी हर खबर ….
खबर पहुँचने
और पहुँचाने के अंतर को
बरकरार रखना चाहती हूँ।
आजकल अपने ख्यालों,
ख़ुशी , ग़म
अपने हर एहसास को
सबके सामने रखने से
कतराने लगी हूँ।
मेरे हाथ
कुछ लिखते-लिखते
सब कुछ
बेकस्पेस कर देते है।
मुझे ये फ़िक्र नहीं
हज़ारों लोगों तक
पहुँचने वाले मेरे शब्दों पर
कोई सवाल न खड़ा कर दें .…
कौन है ? क्या हुआ ? किसके लिए ?
मुझे
उन हज़ारों में
एक ही शख्स का ध्यान रहता है.…
कंही वो
मेरे शब्दों में
अपना नाम न पढ़ ले …
और जान न जाए कि
मैं आज भी उसे लिखती हूँ।
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